
धार: धर्म और भक्ति की अनूठी मिसाल पेश करने वाले अशोक दायमा की भक्ति चर्चा का विषय बनी हुई है। 60 वर्षीय अशोक दायमा पिछले 35 वर्षों से जीरापुर स्थित 64 योगिनी मानसरोवर माता मंदिर के तालाब के गहरे पानी में पद्मासन लगाकर रामचरितमानस के 120 दोहों का पाठ करते आ रहे हैं। यह अद्भुत भक्ति अनुष्ठान नवरात्रि के अवसर पर विशेष रूप से ध्यान आकर्षित कर रहा है, और लोग उनके इस अद्वितीय साधना से प्रेरित हो रहे हैं।
अनोखी भक्ति की विरासत
अशोक दायमा पेशे से शिक्षक हैं, लेकिन उनकी भक्ति ने उन्हें धर्मनिष्ठ समाज में विशेष स्थान दिलाया है। तालाब के गहरे पानी में पद्मासन लगाकर रामचरितमानस का पाठ करना एक कठिन और असाधारण साधना है, जिसे उन्होंने अपने पिता से विरासत में प्राप्त किया। अशोक ने बताया कि जब वे 10 साल के थे, उनके पिता ने उन्हें तैरना और पद्मासन करना सिखाया था, जिसके बाद से वे लगातार इस अनुष्ठान को जारी रखे हुए हैं।
प्राकृतिक तत्वों के साथ साधना
उनकी साधना के दौरान वे एक हाथ में शंख और दूसरे हाथ में रामायण लेकर पानी के बीचों बीच पद्मासन की मुद्रा में बैठते हैं और शंखनाद करते हुए रामचरितमानस का पाठ करते हैं। तालाब के गहरे पानी में लहरों के बीच स्थिर रहकर इस तरह का अनुष्ठान करना उनकी भक्ति की गहराई और मानसिक संतुलन का प्रतीक है। नवरात्रि के दौरान उनकी यह साधना विशेष रूप से चर्चित होती है और सैकड़ों श्रद्धालु उन्हें देखने आते हैं।
भक्ति से प्रेरणा का संदेश
अशोक दायमा केवल अपनी भक्ति तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि वह इस अद्वितीय साधना को आगे बढ़ाने का भी प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने अपने परिवार और बच्चों को तैरने और इस साधना की शिक्षा दी है। उनका मानना है कि जैसे उन्हें यह विरासत में मिली, वैसे ही वे इसे आने वाली पीढ़ियों को सौंपेंगे। उनकी साधना से लोग न केवल धार्मिक आस्था से प्रेरित होते हैं, बल्कि यह भी सीखते हैं कि कैसे मन और शरीर का संयम किसी साधक को अद्वितीय बना सकता है।
श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र
उनकी यह साधना लोगों को मंत्रमुग्ध करती है, और रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु उन्हें तालाब में इस अनुष्ठान को करते हुए देखने आते हैं। उनकी भक्ति और समर्पण ने उन्हें धार जिले के धार्मिक समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया है। उनके अनुकरणीय साधना और भक्ति का संदेश लोगों को आस्था और विश्वास की शक्ति में विश्वास करने की प्रेरणा देता है।
अशोक दायमा की यह अनोखी भक्ति एक अद्वितीय उदाहरण है कि कैसे व्यक्ति धर्म और आस्था के प्रति अडिग रहकर अपने जीवन को साधना और समर्पण की ऊंचाईयों तक पहुंचा सकता है। उनकी साधना न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।
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